२३ वर्षीया उस युवती का नाम कामिनी था , पर नाम की ही कामिनी थी वो | शायद ही उसे देख कर किसी की काम वासना भड़की हो | उसका रंग काला था और सोने पे सुहागा चेहरे पर चेचक के दाग थे | जो भी उसे देखता नाक भोंह सिकोड़े बिना नहीं रह पता था |
जवान लड़की तो ऐसे भी पिता के लिए अभिशाप होती है , ऊपर से कामिनी जैसी बदसूरत | आने जाने वाले रिश्तेदारों के तानो ने गरीब शर्मा जी की रातों की नीद उड़ा दी थी |ऐसा नहीं है की शर्मा जी ने अपनी पुत्री के लिए रिश्ते नहीं देखे , बहुत रिश्ते देखे उसके लिए , पर जो भी युवक उस कन्या को देखता , हमेशा घृणा की भावना से ही देखता | दहेज़ के रूप में शर्मा जी की जीवन भर की कमाई का लालच भी किसी युवक को कामिनी को अपनी अर्धांगिनी बनाने के लिए आकर्षित नहीं कर पाता था |
भले ही वो कुरूप थी , पर थी तो आखिर स्त्री ही | उसके भीतर भी कही ना कही यौवन और उसकी पूर्णता की महत्वाकांक्षा समाहित थी |पर उसकी ये महत्वाकांक्षा जब धूमिल नजर होती आयी जब शर्मा जी की आखिरी उम्मीद , तलाकशुदा ४० वर्षीय रिक्शा चालक दीनू ने भी कामिनी को अपनाने से इंकार कर दिया | शायद अब उस युवती को जीवन भर कुंवारी ही रहना था |
कुछ दिनों बाद अचानक गाँव में हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़के | रात का समय था ,बेबाक अन्धकार था | लोग बेहताशा भाग रहे थे इधर उधर | कामिनी भी उस समय वही थी , वो भी अपने दुपट्टे को सँभालते हुए , भाग रही थी लोगो के साथ | अचानक किसी ने कामिनी का हाथ पकड़ लिया और देखते ही देखते भूखे भेडियो का समूह कामिनी पर टूट पड़ा था | और उसकी इज्ज़त लूटने लगा | विवशता और व्याकुलता कामिनी के चहरे पर साफ नजर आ रही थी |वो चिल्ला रही थी चीख रही थी |पर सभी लोगो को अपनी जान की पड़ी थी | उसकी चींखो की परवाह किसको थी |
अचानक रात के अन्धकार में उसकी नजर उसकी इज्ज़त लूटते एक साये पर पड़ी | वो दीनू था | उसने अब चिल्लाना बंद कर दिया था | अपितु उसे एक अजीब सा सुकून मिल रहा था | अपनी फटी सलवार के साथ घर जाते हुए शायद उसे इज्ज़त लूटने के दुःख से ज्यादा इस बात की ख़ुशी थी की दिन के उजाले में ना सही रात के अँधेरे में ही सही, उसका योवन किसी के काम तो आया | निशा की रजिनी में वो भी कामिनी थी |
When u leave ur home and go to foreign land , both good and bad memories add to hard-disk of ur mind ! Blogs written here based on some of those memories , that r being added to me in these days during my malaysia stay ! comments are highly welcomed !
Tuesday, January 11, 2011
Saturday, January 8, 2011
मित्र
आज वह बहुत दुखी था
दुःख तो उसे हमेशा से ही था
पर आज दुःख का पारावार न था
हमेशा तो आँखों से पानी बहता था
पर आज तो हृदय चीत्कार कर रहा था
और आँखे सुखी थी
ह्रदय की वेदना ना रोने देती थी
ना ह्रदय को चुप होने देती थी
बस छोड़ जाती थी ह्रदय के चारो तरफ
तो एक चीत्कार , एक हाहाकार
और एक सन्नाटा , निर्मोही शांति
किसी ने उसे पागल समझा
तो किसी ने बेचारा समझा
किसी दयावान ने दया का पत्र समझा
तो धर्मात्मा ने प्रभु की मर्जी समझा
पर किसी ने उस दुःख को नहीं समझा
शयद अब ये दुःख ही उसका मित्र था
और निर्मोही शांति उसकी अर्धांगिनी
चलो , अब मेरे जीवन में एक मित्र तो है
इस एक विचार से वो उठा , खड़ा हुआ
और लग गया नित्यक्रम में
दुःख तो उसे हमेशा से ही था
पर आज दुःख का पारावार न था
हमेशा तो आँखों से पानी बहता था
पर आज तो हृदय चीत्कार कर रहा था
और आँखे सुखी थी
ह्रदय की वेदना ना रोने देती थी
ना ह्रदय को चुप होने देती थी
बस छोड़ जाती थी ह्रदय के चारो तरफ
तो एक चीत्कार , एक हाहाकार
और एक सन्नाटा , निर्मोही शांति
किसी ने उसे पागल समझा
तो किसी ने बेचारा समझा
किसी दयावान ने दया का पत्र समझा
तो धर्मात्मा ने प्रभु की मर्जी समझा
पर किसी ने उस दुःख को नहीं समझा
शयद अब ये दुःख ही उसका मित्र था
और निर्मोही शांति उसकी अर्धांगिनी
चलो , अब मेरे जीवन में एक मित्र तो है
इस एक विचार से वो उठा , खड़ा हुआ
और लग गया नित्यक्रम में
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